हरेली तिहार मा गुरहा चीला के भोग
1 min readमीर अली मीर, छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध कवि
हरेली तिहार मा गुरहा चीला के भोग अपन मिहनत ले उपजे हरियाली के तिहार ला हरेली तिहार के रूप मा मनाना हमर संस्कार ए। कृषि युग के शुरूवात ला लेके आजतक हमर तन-मन मा हरियाली छाहित होगे हे। प्रकृति चक्र मा जेठ-बइसाख के तिपत भोम्हरा मा आषाढ़ के बूंदी परथे त माटी के सोंध-सोंध ममहाई के सुरता ला सबो झन मन मा, बसाए हरियाए के कल्पना समा जथे।
वइसे तो बइसाख के अक्ती, आषाढ़ के रजुतिया अऊ सावन के हरेली हमर किसान बनिहार अऊ पौनी-पसारी के माई तिहार असन लागथे, तभे तो नांगर के नास धरे धरहा संगवारी धरती ला उपजाऊ बनाए बर अपन मिहनत के सिंगार करथे।
सबो बेरा मा मिहनत के बाद थकासी ला दूर करे बर उछाह मंगल के कामना रइथे। उछाल मंगल मा खुशहाली आथे।
तनम न मा नवांकुर के बीज पर जाथे। खेती किसानी मा जीवन के सार हे। पछीना ओगारे काया काकरो राहय ओकर ममहाई मा अलगे आनंद मिलथे। करत किसानी चले ला नांगर पेरत रहिबे जिनगी भर जांगर। हरेली दिन अमावस के अधियारी ला भगागे नवा प्रकाश मा जाए के संदेसा हावय।
हर लेथे सबो के मन ला हरियाली। गौधन हमर कृषि संस्कृति के आधार हरे। अन्न कुंवारी के बोवाई ला लेके कोठी मा सन्मान सहित सहेजे के परंपरा ला हमन ला जगाए रखना हे।
हरेली मा
(1) हरेली मा गौधन के पूजा करे के विधान चांउर पिसान के लोंदी बनाए जाथे जेमा जड़ी बूटी ला मिझारे जथे अऊ बड़ उल्हास के संग माल मवेशी ला खवाए जथे एमा हमर किसनहा परिवार के बिसान घलो समाए हे, काबर के चौमास मा हमर गौधन बीमार झन परंय। अंडी पौधा के पाना मा गड़ानून धर के मवेसी मन ला चँटाए घलो जाथे
(2) जिवका के अधार हमर किसानी अऊ पशुधन-जिहां धरती हे, हवा हे, पानी हे,आगी हे, अऊ अगास हे। तभे तो हरियाए धरती मा नवा-नवा अंकुर के पूजा विधान बनिस।
(3) कृषि औजार-नांगर, कोप्पर, रापा, कुदारी, हंसिया सहित सब्बो ला तरिया मा लेज के धोए जथे फेर तेल चुपर के धर के अंगना तुलसी चंवरा के आगू मा सजा के हाथा देयके परंपरा निभागे हूम धूप देय के बाद गुरहा चीला के भोग लगाए जाथे। पूजा मा सादगी छत्तीसगढ़ के संस्कार अऊ पहचान हरे। चंदन तिलक लगाके पूजा पाठ करे जाथे।
(4) पांचो पवनी पसारी-राऊत,नाऊ,लोहार,धोबी अऊ कोटवार के महत्ता हमर हरेली तिहार मा बाढ़ जथे। लीम के कुंवर-कुंवर हरियर डाला खोंचे जाथे ऐमा प्रकृति के हरियाली ला धरोधर पहुंचाए जाथे। लोहार माई दुवारी मा खीला ठेंसथे अऊ कोनो किसम के बिध्न झन आवय कहिके सुमिरन करथे
(5) सवनाही-बरसाती बीमारी ले बचाए खातिर घर अऊ गौठान मा गोबर के धेरा बनाए जाथे।
(6) गेंड़ी के मजा-प्रकृति प्रदत्र साधन जेमा बास के डाँड़ बाँस के पौवा अऊ बांसेच के खीला अऊ पटसन के डोरी लेवव गेंड़ी के सवांगा होगे। पहली जमाना मा चिखला पानी हिरू बिछरू के डर राहय तेकरे सेती आए जाए रेंगे बर गेंड़ी बनाए गे रिहिस होगी तेन बात आजो सिरतोन लागथे। फेर आज काल खेल-खेल मा गेंड़ी मचे के अलग मजा हे। खेलत-खेलत पानी पियाए के उदिम करना एक ठन गेंड़ी ला खांद मा मड़ाके एक्के गोड़ मा मचना साहस के दरसन करा देथे। हमर किसान परिवार साहसी घलाव होथें।
(7) लइका सियान सबो खेल मा माते रइथे नरियर मेले बर सर्त लगाना। भेला के खुरहोरी निकालना कबड्डी, खोखो, फुगड़ी खेलना अउ रंग-रंग के कलेवा के मजा लेना एही हरे हरेली तिहार के खुशहाली।
(8) कलेवा मा- चीला चौंसेला बोबरा अऊ बरा के मजा लेना कतका सुंघ्घर लागथे झन पूछ।
(9) छत्तीसगढ़ राज बने के बाद हमर संस्कृति अऊ संस्कार ला प्रदेश भर मा हमर सरकार हा बगरावत हे अऊ “गढ़बो नवा छत्तीसगढ़” के कल्पना ला साकार करत हे।