सामाजिक न्याय भी भाजपा का चुनावी जुमला? जनता, कार्यकर्ता और अपने ही स्थानीय नेताओं के हक का गला घोटना भाजपा का राजनीतिक चरित्र है।
1 min readबीजेपी कार्यसमिति में प्रदेश के 97 प्रतिशत ओबीसी/एसटी/एससी को केवल 44 प्रतिशत प्रतिनिधित्व, 3 फ़ीसदी आबादी से 56 प्रतिशत पद?’
रायपुर/12 सितंबर 2022। भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी में हुए बदलाव पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि सामाजिक न्याय का नारा भारतीय जनता पार्टी के लिए केवल एक चुनावी जुमला है। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव के नवगठित 54 सदस्य कार्यसमिति में प्रदेश के 52 प्रतिशत ओबीसी अबादी से कुल 12 प्रतिनिधि अर्थात 52 प्रतिशत ओबीसी वर्ग को मात्र 22 प्रतिशत प्रतिनिधित्व मिला है। 32 परसेंट अनुसूचित जनजाति वर्ग से कुल 7 प्रतिनिधि अर्थात एसटी वर्ग को केवल 13 प्रतिशत और 13 प्रतिशत अनुसूचित जाति के कुल 5 प्रतिनिधि शामिल हैं जो केवल 9 प्रतिशत है। कुल 54 पदाधिकारियों में से बहुसंख्यक पदाधिकारी जिनकी संख्या लगभग 30 हैं अर्थात् 56 प्रतिशत सदस्य गैर ओबीसी, एसटी, एससी जिनकी आबादी प्रदेश में केवल 3 प्रतिशत है उस वर्ग से आते हैं। नवनियुक्त कार्यकारिणी से प्रमाणित है कि सामाजिक न्याय भी भाजपा के लिए केवल एक चुनावी जुमला है। स्थानीय जनता से वादाखिलाफी, झूठ, भ्रम, गलतबयानी, ऊर्जावान स्थानीय कार्यकर्ताओं और नेताओं की उपेक्षा के कारण ही भाजपा छत्तीसगढ़ में जर्जर अवस्था में पहुंच चुकी है।
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि छत्तीसगढ़ भाजपा में चेहरा बदलने से कुछ नहीं होने वाला, बीजेपी के समक्ष मूल संकट विश्वसनीयता का है, नीति और नियत बदलने की ज़रूरत है। विगत साढ़े तीन वर्षों में चार प्रदेश अध्यक्ष बदले गए (2018 में धरमलाल कौशिक थे फिर विक्रम उसेंडी, विष्णुदेव साय और अब अरुण साव), छः प्रभारी आए (2018 में सौदान सिंह थे फिर डी. पुरंदेश्वरी, नितिन नवीन, शिव प्रकाश, अजय जामवाल और अब ओम माथूर), दर्जनों केंद्रीय मंत्री आए, भाजपा एजेंट की भूमिका में आईटी और ईडी आए, छत्तीसगढ़ के इतिहास में पहली बार बिना कार्यकाल पूरा किए नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक बदले गए और अब कार्यसमिति में बदलाव? हकीकत यह है कि भाजपा के सभी हथकंडे फेल हो चुके हैं। जनता, पार्टी कार्यकर्ता और शीर्ष नेतृत्व सभी ने छत्तीसगढ के भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को नकार दिया है। रमनराज के कुशासन, भ्रष्टाचार और वादाखिलाफी की कालिख अभी तक धुली नहीं है। दूसरी ओर तेज़ी से स्थापित हो रहे भूपेश सरकार के सुशासन और समृद्धि के छत्तीसगढ़ मॉडल से छत्तीसगढ़ में भाजपा पूरी तरह से मुद्दाविहीन हो गई है। इन्हें सकारात्मक विपक्ष की भूमिका निभाने के विषय भी नहीं सूझ रहा है, केवल अपना अस्तित्व बचाने के लिए तरह-तरह के बदलाव कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ के 97 प्रतिशत स्थानीय आबादी (ओबीसी/एसटी/एससी) के हक और अधिकारों का गला घोटना भारतीय जनता पार्टी को भारी पड़ेगा।