राष्ट्रीय रामायण महोत्सव के आयोजन के विरोध से भाजपा का राजनैतिक पाखंड एक बार फिर उजागर
1 min readरायपुर/30 मई 2023। रायगढ़ में राष्ट्रीय रामायण महोत्सव के आयोजन को लेकर भाजपा के विरोध पर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि छत्तीसगढ़ की जनता ने 15 साल भारतीय जनता पार्टी को अवसर दिया था लेकिन राम काज भूल गए। छत्तीसगढ़ के कण-कण में प्रभु श्री राम बसे हैं। पूर्व में छत्तीसगढ़ को कौशल प्रदेश और बस्तर को दंडकारण्य कहा जाता था। रामायण में अरण्यकांड का संदर्भ छत्तीसगढ़ से ही रहा है। आगामी 1 से 3 जून को रायगढ़ में होने वाले राष्ट्रीय रामायण महोत्सव में विशेष तौर पर अरण्यकांड के प्रसंग का वाचन और गायन होगा। आयोजन में कुमार विश्वास सहित नामचीन हस्तियां, 12 राज्यों की रामायण मंडली और विदेशी मंडली भी छत्तीसगढ़ पहुंचेगी। छत्तीसगढ़ के उत्तर में कोरिया जिले के सीतामढ़ी हर चौका से लेकर दक्षिण में सुकमा जिले के रामाराम तक 75 स्थल राम वन गमन पथ के रूप में चिन्हित कर पर्यटक सुविधाएं विकसित की जा रही है। चंदखुरी, शिवरीनारायण, राजीव सहित आठ स्थलों पर तृतीय चरण का कार्य भी लगभग पूरा हो चुका है। राम वन गमन पथ के 2260 किलोमीटर में सड़क के दोनों ओर फलदार वृक्षारोपण किया जा रहा है। माता कौशल्या का दुनिया का एकमात्र मंदिर राजधानी से मात्र 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है 15 साल रमन सिंह मुख्यमंत्री रहे तब उन्हें सुध नहीं आई। भूपेश सरकार ने ना केवल कौशल्या मंदिर की ख्याति को पुनर्स्थापित किया बल्कि प्रत्येक वर्ष माता कौशल्या उत्सव और शिवरीनारायण, राजिम, चंदखुरी में रामायण महोत्सव की शुरुआत भी की। प्रदेशभर के रामायण मंडलियों को संरक्षण और सहायता देने का काम भी भूपेश सरकार में तेजी से जारी है।
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि धर्म के ठेकेदार होने का दंभ भरने वाले भाजपाइयों के लिए गाय, गोबर, प्रभु श्री राम और माता कौशल्या भी केवल चुनावी लाभ के लिये है। पहले भी राम मंदिर के नाम पर एकत्रित किए गए चंदा चोरी का आरोप भाजपा पर लगा था और हाल ही में अयोध्या में भूमि अधिग्रहण के मामले में चंपत राय और भाजपा के तमाम नेताओं की संलिप्तता उजागर हुई है। छत्तीसगढ़ में प्रभु श्री राम और माता कौशल्या ना केवल धार्मिक लिहाज से बल्कि यहां की संस्कृति में भी रचे बसे हैं। यहां जन्मोत्सव के छठी कार्यक्रमों में भी रामायण पाठ होता है। सुबह का अभिवादन भी राम-राम से, भेंट मुलाकात सीता-राम से होता है। धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में जब किसान फसल की मिंजाई के बाद नपाई करता है तो नापने के पैमाने “काठा“ में गिनती का पहला शब्द भी “राम“ से ही शुरू होता है। यहां का किसान काठे से नपाई के दौरान एक नहीं कहता, पहला काठा प्रभु श्री राम के नाम से गिनती शुरू होती है। ना केवल श्रद्धा और आस्था बल्कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति में प्रभु श्री राम रचे बसे हैं। पूर्व में कौशल प्रदेश के नाम से जाने जाना वाला छत्तीसगढ़ माता कौशल्या का मायका है, इसी कारण छत्तीसगढ़ में प्रभु श्री राम को “भांजे“ के रूप में पूजने की परंपरा रही है। भूपेश सरकार बनने के बाद छत्तीसगढ़ में स्थानीय प्रथा, परंपरा, रीति-रिवाज, खानपान और तीज त्यौहारों के सरकारी आयोजन की शुरुआत हुई है। मातागुड़ी, देवगुड़ी, घोटुल के साथ-साथ रामलीला के आयोजन और मंचन को संस्कृति विभाग द्वारा प्रोत्साहित किया जा रहा है। छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान और आत्मसम्मान पुनर्स्थापित हुआ है तो सामंतवादी सोच के भाजपा नेताओं को पीड़ा हो रही है। रायगढ़ में आयोजित राष्ट्रीय रामायण महोत्सव के आयोजन का विरोध भाजपाइयों के कालनेमि चरित्र को उजागर करता है।